रिएजेंट की जिला अस्पतालों में भी नाममात्र की मांग, फिर भी थोक के भाव स्वास्थ्य केंद्रों में कर दी सप्लाई, EOW ने किया खुलासा

रायपुर: छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग से जुड़े सबसे बड़े घोटालों में से एक 314 करोड़ रुपए का रिएजेंट घोटाला उजागर हुआ है। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच में पता चला है कि जिन रिएजेंट की जिला अस्पतालों में भी नाममात्र की मांग थी, उन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में थोक में सप्लाई कर दिया गया। यह सप्लाई तब की गई, जब इन केंद्रों में न तो जरूरी मशीनें थीं, न ही प्रशिक्षित स्टाफ और न ही भंडारण की सुविधा।
बजट स्वीकृति के बिना 314 करोड़ रुपए का ऑर्डर
जांच में पता चला कि सीजीएमएससी ने वित्त विभाग की अनुमति के बिना अग्रिम निधि का सहारा लेकर डीपीडीएमआईएस सॉफ्टवेयर में 314 करोड़ रुपए की एंट्री कर दी। इसके बाद महज 26-27 दिनों में सारे खरीद ऑर्डर जारी कर दिए गए। दवाओं की खरीद के लिए आमतौर पर अपनाए जाने वाले सॉफ्टवेयर को नजरअंदाज करते हुए रिएजेंट की आपूर्ति के लिए कोई वैज्ञानिक या डिजिटल प्रक्रिया नहीं अपनाई गई।
बिना कोल्ड स्टोरेज के भेजे गए अभिकर्मक
अभिकर्मकों के सुरक्षित भंडारण के लिए 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले डिजिटल डिस्प्ले रेफ्रिजरेटर की आवश्यकता थी, जिसकी कमी अधिकारियों को पता थी। इसके बावजूद भारी मात्रा में अभिकर्मक भेजे गए। नतीजा यह हुआ कि अधिकांश पीएचसी और सीएचसी केंद्रों में अभिकर्मक बर्बाद हो गए और भारी वित्तीय नुकसान हुआ। यह सरकारी खजाने पर सीधा प्रहार था, जिससे जनता की गाढ़ी कमाई का दुरुपयोग हुआ।
संचालक स्वास्थ्य सेवाएं और सीजीएमएससी अधिकारियों की गंभीर लापरवाही
ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, संचालक स्वास्थ्य सेवाएं और सीजीएमएससी अधिकारियों ने आपूर्ति से पहले स्वास्थ्य संस्थानों में आवश्यक सुविधाओं का आकलन नहीं किया। न तो मानव संसाधन की उपलब्धता की जांच की गई, न ही बिजली और कोल्ड स्टोरेज की व्यवस्था की गई। यहां तक कि जब यह स्पष्ट हो गया कि सुविधाएं नहीं हैं, तब भी न तो ऑर्डर रद्द किए गए और न ही आपूर्ति रोकी गई। इससे स्पष्ट है कि पूरी प्रक्रिया सुनियोजित लापरवाही और भ्रष्टाचार का उदाहरण थी।
स्वास्थ्य सेवाओं से खिलवाड़
जांच में यह भी सामने आया कि रिएजेंट सप्लाई का सारा लाभ एक ही सप्लायर मोक्षित कॉरपोरेशन को दिया गया। इतनी बड़ी मात्रा के ऑर्डर बिना सरकार की मंजूरी और बजट के दिए गए। इससे न सिर्फ सरकार को आर्थिक नुकसान हुआ, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे। एक्सपायर हो चुके रिएजेंट से न सिर्फ जनता का पैसा बरबाद हुआ, बल्कि मानव स्वास्थ्य के साथ भी बड़ा खिलवाड़ हुआ।